केरल सरकार द्वारा प्रस्तावित विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक 2025 ने शिक्षकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर बहस छेड़ दी है। एक समाचार रिपोर्ट में दावा किया गया कि यह विधेयक शिक्षकों को राज्य सरकार की आलोचना करने से रोकता है, जबकि केंद्र सरकार की आलोचना की अनुमति देता है ।
🗣️ मंत्री का स्पष्टीकरण: ‘राज्य’ का अर्थ भारत
केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि विधेयक में ‘राज्य’ शब्द का अर्थ भारत है, न कि केरल राज्य। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह प्रावधान शिक्षकों को संगठित स्वतंत्रता देने के लिए जोड़ा गया है, ताकि वे बिना पूर्व अनुमति के अपने विचार व्यक्त कर सकें, बशर्ते वह विश्वविद्यालय की नीति और राज्य कानून के अनुरूप हों ।The News Minute
📜 विधेयक के प्रमुख प्रावधान
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प्रचार सामग्री: शिक्षक या उनके संगठन बिना पूर्व अनुमति के प्रचार सामग्री वितरित कर सकते हैं, यदि वह विश्वविद्यालय की नीति और राज्य कानून के अनुरूप हो।
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प्रो-चांसलर की शक्तियाँ: विधेयक में प्रो-चांसलर (उच्च शिक्षा मंत्री) को विश्वविद्यालय के शैक्षणिक और प्रशासनिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार दिया गया है, जिसमें विश्वविद्यालय की संरचना, पाठ्यक्रम, परीक्षाएँ और वित्तीय लेन-देन शामिल हैं ।@mathrubhumi
🧠 विश्लेषण: अकादमिक स्वतंत्रता बनाम प्रशासनिक नियंत्रण
यह विवाद शिक्षा क्षेत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सरकारी नियंत्रण के बीच संतुलन की आवश्यकता को उजागर करता है। शिक्षकों और छात्रों को स्वतंत्र रूप से विचार व्यक्त करने की अनुमति देना लोकतांत्रिक समाज की नींव है। वहीं, विश्वविद्यालयों में अनुशासन और प्रशासनिक नियंत्रण भी आवश्यक है।
📌 निष्कर्ष
केरल विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक 2025 ने शिक्षकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। सरकार का दावा है कि विधेयक का उद्देश्य शिक्षकों को अधिक स्वतंत्रता देना है, जबकि आलोचक इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश के रूप में देख रहे हैं। इस मुद्दे पर स्पष्टता और संवाद की आवश्यकता है, ताकि शिक्षा क्षेत्र में स्वतंत्रता और अनुशासन के बीच संतुलन बना रहे।
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